पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के गुप्त रहस्यः महाभारत काल में अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को दिया था। इसे सुनने के बाद ऋषि निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया | त्रेता युग में सीता द्वारा दशरथ के पिंडदान करने की कथा काफी प्रचलित है|
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाए जाने वाले श्राद्ध हमारी सनातन धर्म की परंपरा का हिस्सा हैं| लेकिन श्राद्ध का प्रारंभिक उल्लेख द्वापर युग में महाभारत काल के समय में ही मिलता है| महाभारत के शासनकाल में पर्व में भीष्म पितामह के युधिष्ठिर के साथ श्राद्ध के संबंध में बातचीत का उल्लेख मिलता है।
उसके बाद अन्य महर्षियों और चारों वर्णों के लोग भी श्राद्ध करने लगे।
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से पितृपक्ष (Pitru Paksha) प्रारंभ होता है जो आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक चलता है। पितरों के मोक्ष के लिए पितृपक्ष (Pitru Paksha) में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म किए श्रद्धापूर्वक विधि विधान से किये जाते हैं।
तीर्थ नैमिषारण्य नाभि बिहार के गया में वर्णित है| इसीलिए पितृपक्ष (Pitru Paksha) में नैमिषारण्य में देश के कोने कोने से श्रद्धालु पितरो का तर्पण करने आते हैं।
पड़ोसी देश नेपाल, श्रीलंका सहित मध्य प्रदेश आदि राज्यों से तमाम श्रद्धालु गया तीर्थ में पहुंचकर पितरों के मोक्ष के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं।
पुराणों के अनुसार, तीर्थ नैमिषारण्य मनुष्य के सभी कष्टों को हरने वाला माना जाता है। यहां पर किए गए पुण्य कर्म मनुष्य के सारे पापों को नष्ट कर देते हैं।
सतयुग से चले आ रहे श्राद्ध और तर्पण का विधान आज भी चल रहा है। पितृपक्ष में तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। पुरखे संतुष्ट होकर निरोग चिरायु श्रेष्ठ संतान आदि का आशीर्वाद देते हैं। नैमिषारण्य पौराणिक स्थलों में से एक नाभि गया (काशी कुंड) व चक्र तीर्थ सहित गोमती नदी के किनारे श्राद्ध व तर्पण का विधान है।
Conclusion (निष्कर्ष)
आशा करते है इस पोस्ट के माध्यम से Pitru Paksha के गुप्त रहस्यों की जानकारी आपको अच्छी लगी होगी।
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मृत्यु के कितने समय बाद श्राद्ध करना चाहिए?
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु के बाद पूरे एक साल तक श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ अन्न, जल का दान और तर्पण करना चाहिए।
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मरने के समय क्या होता है?
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मृत्यु के समय दर्द क्यों होता है?
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