गाय की बिमारी के लक्षण एवं इलाज 2024 | Cow Disease Symptoms Treatment Detailed Hindi

Manoj Verma
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गाय की बिमारी के कारण | गाय की बिमारी के प्रकार | गाय की बिमारी के लक्षण | गाय की बिमारी का टीका एवं इलाज

गाय के स्वास्थ्य में किसी प्रकार के परिवर्तन हो जाने से उस परिवर्तित अवस्था को रोग कहते है। रोग की पहचान उसके कारणों, लक्षणों एवं रोग का ईलाज को समझ कर किया जाता है।

1. गाय की बिमारी के कारण (Etiology/Causes)

प्रत्येक रोग को उत्पन्न करने वाला कोई-न कोई कारण अवश्य होता है जो निम्नलिखित हैः-

  • जीवाणुओं का आक्रमण जैसेः- जीवाणु (बैक्टीरिया), विषाणु (वायरस), फफूंदी (फंगस), परजीवी (Parasites) एवं कीड़े (Worms)
  • बाहरी चोट, कट-फट जाना, फिसल कर गिरना, घाव आदि
  • अधिक सर्दी-गर्मी, तापक्रम, रासायनिक पदार्थ आदि।
  • खाने-पीने और रहने का गंदा स्थान, असामयिक आहार एवं
  • सड़ा-गला और असन्तुलित चारा-दाना तथा पौष्टिकता का अभाव आदि।

2. गाय की बिमारी के लक्षण (Symptoms)

गाय के शरीर के अंदर कुछ ऐसी नई चीजे (परिवर्तन) देखने को मिलती है जो रोगी के ध्यान को आकृष्ट करती है। रोगों के भिन्न-भिन्न लक्षण पशुओ के सामान्य स्वास्थ्य के साथ देखे जा सकते है, जो शरीर के भीतर और बाहर देखे जा सकते है। इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैः-

3. बिमारी की आकृति (Symptoms of Appearance)

बीमार पशुओं में आकृति का लक्षण विशेष महत्वपूर्ण होता है जैसे-

  • आँखो को अंदर की और धँसना यह बताता है पशु मृत्यु के निकट है।
  • त्वचा एवं शरीर का कड़ा होना, सिर का लम्बा होना तथा आँखों का सिकुड़ना टिटनेस रोग को बताता है।
  • चिन्तित एवं शोकाकुल आकृति दर्द के समय होती है।
  • सिर का झुकना, कानों का लटकना एवं पीड़ित आकृति-न्यूमोनिया की ओर इशारा करती है।

4. शरीर की स्थिति (Symptoms of Body Condition)

इस स्थिति से शरीर का पतलापन, दुर्बल या निर्बल होना, रक्तहीन होना (Anaemic) तथा रुग्णावस्था (Cachexia) होना समझा जाता है।

  • शरीर का पतला होना (Thinness) दुर्बलता नहीं, स्वास्थ्य अवस्था हो सकती है।
  • दुर्बल होना (Emaciation) – असमान्य स्थिति में स्वास्थ्य की गिरावट होती है।
  • रक्तहीन होना (Anaemic) – रक्त की कमी मानी जाती है।
  • रुग्णावस्था होना (Cachexia) – गम्भीर रोगों में ज्वर की स्थिति से समझा जाता है, जैसें-कैंसर आदि
  • मेलास्पस (Melasmas) – बीमारी की स्थिति में सामान्य क्षीणता को माना जाता है।

5. स्वभाव एवं आदत में परिवर्तन अथवा विचित्रता (Symptoms of Change or Peculiarity in Habit)

रोगी पशुओं में उनकी सामान्य स्थिति में परिवर्तन हो जाता है विशेषकर छोटे बच्चों में उनके खाने पीने की आदत, उठने, बैठने एवं लेटने के तरीके एवं चाल-ढ़ाल में बदलाव हो जाता है जिन्हें भली-भांति देखा जा सकता है। जैसे-पानी से डरना-पागल कुत्ते के काटने (Rabbies) में होता है।

6. पाचन तंत्र के लक्षण (Symptoms of Alimentary System)

i. मुंह के लक्षणों से

  • जीभ पर दाने एवं मसूड़ों पर छाले/फफोलों का मिलना– पाचन की गड़बड़ी होना बताता है।
  • गलाघोटूं (H.S.), रिन्डरपेस्ट (R. P.), मुँहपका (F.M.D.) आदि में मुँह से लार का टपकना।
  • मुँह से लार का आना – मुँह तथा जीभ के छालों की उपस्थिति एवं इन पर आघात होने पर अथवा मुँह की शलेष्म कला में सूजनयफोड़ा-फुन्सी तथा जख्म होने पर।
  • मुँह से दुर्गन्ध का आना-मुँह से मसूड़े, जीभ पर जख्म होने तता फेफड़े के सड़ने की स्थिति में ऐसा होता है।
  • अत्यधिक लार का बहते मिलना– ग्रास नली में बाह्य पदार्थ अटक जाने पर।

ii. जीभ के लक्षणों से

iii. नाक के लक्षणों से

iv. प्यास के लक्षणों से

v. भूख के लक्षणों से

vi. कलुषित भूख के लक्षणों से

vii. वमन या कै (Vomiting) के लक्षणों से

viii. अतिसार के लक्षणों से

ix. ऑव या शूल (डिसेणट्री) के लक्षण मिलने पर

x. टेनास्पस का लक्षण

xi. स्काईबाला

xii. अवरोध (चोकिंग-Chocking/Choking)

7. श्वसन तंत्र के लक्षण

8. नारी के लक्षण

9. मूत्र-तंत्र के लक्षण

10. तंत्रिका तंत्र के लक्षण

11. त्वचा के लक्षण

गाय की बिमारी एवं ईलाज

1. गाय काे उठने बैठने में दिक्कत होना

गाय के शरीर में जरुरी मिनरल की कमी होने पर उसको उठने बैठने में दिक्कत होती है इसके लिए उसे-Ascal Gel (250ml x 2) देने के साथ-साथ Nuro Kind Plus Vet Syrup (100ml x 15days)

2. गाय को कुछ-कुछ दिन पर पेट खराब होना या डायरिया हो जाना

जब कभी गाय को कुछ-कुछ दिन पर पेट खराब हो जाय तो समझना चाहिए की गाय को पाचन शक्ति में कोई कमी है इसके लिए-Latifur Ultra Powder (3Pkt x 3बार) देने से उसके पेट का बार-बार खराब होना ठीक हो जाता है।

3. गाय को पुराना गहरा घाव का होना

जब गाय को कोई पुराना घाव हो तो इसको जल्दी ठीक करने के लिए Moxiwell Bolus 3 Pc देने से कोई भी पुराना घाव ठीक हो जाता है। लेकिन इसके लिए किसी डॉक्टर की सलाह अवश्य लेेवे क्योंकि इस दवाई में एंटीबायटिक्स की मात्रा होती है जिससे गाय के लिवर पर प्रभाव भी पड़ सकता है।

निष्कर्ष

इस पोस्ट में गाय की बिमारी से संबंधित जानकारी एवं उसके इलाज के बारे में जानकारी यदि ध्यान में रखकर गाय का देखभाल किया जाय तो गाय बिमारी से बचे रहेंगे।

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गायों की बीमारी का देसी इलाज क्या है?

गायों की बीमारी का देसी इलाज है उसे समय पर टीकाकरण करवाना, डीवार्मिंग कराना, लीवर टॉनिक देना, मिनरल आदि समय-समय पर देते रहना। गाय को आंवला,अश्वगन्धा, गिलोय एंव मुलेठी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिलाकर सुबह शाम लड्डू बनाकर खिलाएं

गाय की नई बीमारी कौन सी है?

लंपी नामक बिमारी जो संक्रमण से फैलती है।

गाय बीमार हो तो क्या करें?

बार-बार पतला गोबर आने के कारण गाय का शरीर कमजोर पड़ जाता है। यह रोग आमतौर पर गाय की पाचन क्रिया खराब होने या फिर पेट में किसी प्रकार का संक्रमण होने के कारण होता है। हालांकि, यह अधिक गर्मी लगने या अधिक हराई खाने के कारण भी हो सकता है। पतला गोबर पिचकारी की तरह निकलना दस्त का मुख्य लक्षण है।

गाय चारा नहीं खा रही है क्या कारण है?

गाय के चारा न खाने का कारण अगर जानें तो उसमें सबसे बड़ा पाचन क्रिया में कुछ गड़बड़ी होना होता है। बहुत बार ऐसा होता है कि पशु दूषित खाना खा लेता है, या फिर पशुपालक भी उसे सड़ा-गला खाना दे देते हैं। इतना ही नहीं अगर पशु गंदा पानी भी पी लेगा, तो उसकी वजह से भी उसकी पाचन क्रिया में खराबी हो सकती है।

पशु को बुखार होने पर क्या करें?

पशु को अधिक से अधिक ताजा पानी पीने को देना चाहिए। मीठा सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 15 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, सैलीसिलिक एसिड 15 ग्राम, 500 मिली. पोटैशियम नाइट्रेट, 30 ग्राम चिरायता का महीन चूर्ण और गुड़ 100 ग्राम लगभग 200 ग्राम पानी में घोल कर गाय या भैंस को 8 से 10 घंटे के अंतर पर पिलाना चाहिए।

गाय के पेट में कीड़े हो तो क्या करें?

 हर तीन महीने पर पशुओं को पेट के कीड़े (कृमिनाशक) डीवेरमैक्स की दवा दें। पशुओं के गोबर की जांच कराने के बाद ही पेट के कीड़ों की दवाई दें। जांच के लिए पशु के गोबर को एक छोटी डिब्बी में इकट्ठा करें। बीमार और कमजोर पशुओं को पशुचिकित्सक की सलाह लेकर ही कृमिनाशक की दवा दें।

गायों के लिए सबसे अच्छा कृमिनाशक कौन सा है?

बेंज़िमिडाज़ोल और मैक्रोसाइक्लिक लैक्टोन वर्गों में डीवॉर्मर्स मवेशियों के लिए सबसे व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं। मैक्रोसाइक्लिक लैक्टोन पोर-ऑन या इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध हैं, जबकि बेंज़िमिडाज़ोल आमतौर पर मौखिक रूप से प्रशासित होते हैं।

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मेरा नाम मनोज वर्मा है। मैं बिहार के छोटे से शहर मुजफ्फरपुर से हूँ। मैने अर्थशास्त्र ऑनर्स के साथ एम.सी.ए. किया है। इसके अलावे डिजाईनिंग, एकाउटिंग, कम्प्युटर हार्डवेयर एवं नेटवर्किंग का स्पेशल कोर्स कर रखा हूँ। साथ ही मुझे कम्प्युटर मेंटनेंस का 21 वर्ष का अनुभव है, कम्प्युटर की जटिल समस्याओं को सूक्ष्मता से अध्ययन कर उनका समाधान करने एवं महत्वपूर्ण जानकारियों को डिजिटल मिडिया द्वारा लोगों तक पहुँचाना चाहता हूँ, ऑनलाईन अर्निंग, बायोग्राफी, शेयर ट्रेडिंग, कम्प्युटर, मोटिवेशनल कहानी, शेयर ट्रेडिंग, ऑनलाईन अर्निंग, फेमस लोगों की जीवनी के बारे में लोगो तक जानकारी पहुँचाने हेतु लिखता हूँ।
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