Bhojan Mantra: हम भोजन क्यों करते हैं ? जब से हम जन्म लेते हैं। शरीर को शक्ति की आवश्यकता होती है। शक्ति के दो मुख्य स्रोत हैं- पहला नींद दूसरा भोजन । नींद तो अनिवार्यता सबको लेनी ही पड़ती है एक-दो दिन भी कम हो गई तो शरीर हाथ के हाथ आपको पूरा करने को मजबूर होता है
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भोजन मन्त्र: (Bhojan Mantra)
भोजन ग्रहण करने से पहले
यह विचार मन मे करना है
कि किस हेतु से इस शरीर का
रक्षण पोषण करना है
हे परमेश्वर आपसे एक प्रार्थना
है कि नित्य हम तुम्हारे चरणों में
लग जाये, तन मन धन मेरा
विश्व धर्म की सेवा में ॥
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।
ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
#1. भोजन (Bhojan) हम दो कारणों से करते हैं –
पहला शक्ति के लिए दूसरा स्वाद के लिए आरंभ से ही शक्ति और स्वाद में कुश्ती चलती है और देखा गया है कि इस कुश्ती में स्वाद जीता है और शक्ति पीछे रह जाती है।
कई चीजें जो हम केवल इसलिए खा पी लेते हैं कि वे स्वादिष्ट लगती है चाहे उनमें शक्ति है या नहीं या चाहे वह अंततः नुकसान ही करें । कहने को तो कहते हैं कि हम जीने के लिए खाते हैं पर वस्तुतः यह पाया जाता है कि हम खाने के लिए जीते हैं।
#2. हम भोजन (Bhojan) पका कर क्यों खाते हैं ?
यूं तो हम कहते हैं कि खाने की वस्तु में कई कीड़े इत्यादि रहते हैं अतः हम पका कर खाते हैं प्रमुखता स्वाद के लिए ही पका कर खाते हैं। यद्यपि हम जानते हैं कि भोजन को पकाने से उसकी पौष्टिकता निश्चित रूप से कम होती है फिर भी स्वाद वह सुविधा के लिए हम पका कर ही खाना खाते हैं।
#3. हमें क्या-क्या भोजन (Bhojan) खाना चाहिए ?
पहला कार्बोहाइड्रेट दूसरा प्रोटीन तीसरा चर्बी चौथा खनिज लवण पांचवा विटामिंन कार्बोहाइड्रेट के मुख्य स्रोत हैं। गेहूं चावल जौ बाजरा ज्वार मकई इत्यादि जो कि हमें हमारा जो संतुलित भोजन है उसमें कम से कम 50% होना चाहिए ।
दूसरा प्रोटीन है जोकि दाल मूंगफली सोयाबीन दूध इत्यादि में पाया जाता है इसका संतुलित भोजन में अनुपात 15 से 20% होना चाहिए। तीसरा चर्बी तेल घी अथवा वे पदार्थ जिनमें तेल निकलता है जैसे मूंगफली नारियल सरसों इत्यादि ।
इसका संतुलित भोजन में अनुपात 8 से 10% होना चाहिए। चौथा खनिज लवण पांचवा विटामिन यह सब चीज हमें फल और सब्जी से मिलता है इसका संतुलित भोजन में उचित मात्रा में हमें संतुलित भोजन के साथ ग्रहण करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त दूध एवं डेयरी पदार्थों में शरीर के लिए आवश्यक कई चीजें एक साथ होती है । अतः इसका नियमित सेवन करने से जो भी बची कुची कमी रह जाती है वह उसे पूरा करने में सहायक होता है और पौष्टिकता बढ़ाता है जिससे हमारा शरीर जो है वह स्वस्थ रहता है।
#4. भोजन (Bhojan) से संबंधित अनमोल वचन
” शरीर को भगवान का मंदिर समझकर आत्म संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करें ” !
आचार्य श्री राम शर्मा
#5. भोजन करने के कुछ अनमोल नियम
चरक संहिता से संकलित भोजन करने के कुछ अनमोल नियम
- गर्म भोजन से जठर तेज होती है भोजन शीघ्र पचता है ।
- स्निग्ध भोजन शरीर का पोषण इंद्रियों को दृढ़ और बलवान बनाता है ।
- पाचन शक्ति के अनुकूल उचित मात्रा में भोजन करें ताकि वह आपके स्वास्थ्य को अच्छा रख सके ।
- पहले खाना खाने के कुछ समय के पश्चात अर्थात जब भोजन आपका पच जाए तभी दूसरा आहार या भोजन ग्रहण करें ।
- स्व रुचिकर भोजन अनुकूल स्थान में बैठकर सेवन करें ।
- जल्दी-जल्दी भोजन ना करें अन्यथा लार का जो कार्य है वह पूरा नहीं होगा और भोजन ठीक तरह से पचेगा नहीं अर्थात भोजन धीरे-धीरे करें जिससे लार रस ठीक तरह से भोजन में शामिल होगा और भोजन आसानी से पच सकेगा
- धीरे-धीरे रुक रुक कर भोजन करने से तृप्ति नहीं होती है आहार ठंडा तथा पाक विषम हो जाता है ।
- एकाग्रचित्त होकर भोजन का आनंद लें ऐसा करने से भोजन भली-भांति पचता है और शरीर को लाभ पहुंचाता है ।
- आत्मविश्वास के साथ आहार ले मतलब यह आहार मेरे लिए लाभकारी है यह विचार करके अपनी शक्ति के अनुकूल मात्रा के लिए लिया गया भोजन हितकारी होता है।
- अविरुद्ध वीर्य वाले आहार ले मतलब विरूद्ध वीर्य का भोजन रोग उत्पन्न करता है ।
#6. भोजन के संबंध में 25 उपयोगी सूत्र
- अमाशय के 3 भाग 1 / 3 ठोस, 1 / 3 अर्धतराल,1 / 3 खाली ।
- नियत समय नियत मात्रा ।
- ईश्वर ध्यान के बाद भोजन ग्रहण करना तथा भोजन के समय प्रसन चित्र रहना ।
- भोजन की मात्रा अपनी शक्ति के अनुकूल ही होनी चाहिए ।
- जिस भोजन को देखने से घृणा या अरुचि हो ऐसा भोजन कभी नहीं खाना चाहिए ।
- बासी भोजन से आलस्य व स्मरण शक्ति में कमी होती है।
- शरीर ताप से थोड़ा अधिक गर्म भोजन लाभकारी है जल्दी पकता है और वायु निकलता है जठराग्नि प्रदीप्त करता है कफ शुद्ध करता है ।
- जली हुई रोटी सार हीन होती है कच्ची रोटी पेट में दर्द उत्पन्न करती है ।
- दिन मौसम या समय पर भोजन में परिवर्तन भी आवश्यक है ।
- अधिक गर्म या अधिक ठंडा भोजन दांत के लिए हानिकारक होता है ।
- भोजन में कुछ चिकनाहट भी आवश्यक है ।
- भोजन में अंतर 6 घंटे का । 3 से कम नहीं होना चाहिए
- 30 मिनट से कम समय में भोजन नहीं करना चाहिए
- क्षार और विटामिन युक्त आहार लें अर्थात सब्जी और फल की मात्रा गेहूं चावल आलू दाल से 3 गुनी अधिक होनी चाहिए ।
- घी तेल की बनी हुई चीजें कम खानी चाहिए कटहल उड़द की दाल जैसी भारी चीजें खानी चाहिए ।
- भोजन करते समय हंसना और बोलना ठीक नहीं रहता है इससे श्वास नली में रूकावट हो सकती है ।
- प्रातः चाय कॉफी के बजाय नींबू पानी लेना अधिक लाभदायक होता है ।
- थोड़ा भूख रहे तभी भोजन से हाथ खींच लेना चाहिए।
- दोपहर का भोजन करने के पश्चात 10 या 20 मिनट लेट कर विश्राम करना चाहिए पर सोना नहीं चाहिए अन्यथा हानि होती है शाम को भोजन के बाद कम से कम डेढ़ से 2 किलोमीटर डालना चाहिए।
- शाम का भोजन सोने से 3 या कम से कम 2 घंटा पहले कर लेना चाहिए खाते ही सो जाने से पचने की गड़बड़ी हो सकती है और नींद भी सुख में नहीं आता है ।
- भोजन में एक साथ बहुत सी चीजें होना हानिकारक है इससे अधिक भोजन की संभावना बन जाती है ।
- रेशेदार साक या दाल भोजन में ठीक रहता है सूखे भोजन से कलेजे में जलन और रक्त मिश्रण में बाधा पहुंचती है ।
- अधिक चिकनाई भी हानिकारक है केवल विशेष श्रम शील व्यायाम वाले के लिए ही ठीक है ।
- खाने को आधा, पीने को दुगुना, कसरत को 3 गुना और हंसने को 4 गुना करें । केवल पचने पर ही पोषण मिलता है
#7. अपने आप से 19 प्रश्न पूछिए
- क्या हम केवल तीव्र भूख लगने पर ही खाते हैं ?
- पहला भोजन पचने की प्रतीक्षा किए बिना क्या बीच-बीच में कुछ वस्तुएं स्वाद के लिए तो नहीं खाते हैं ?
- कहीं आधे पेट से अधिक भोजन तो नहीं कर लेते?
- कहीं पतली चीजों के साथ भोजन जल्दी तो नहीं निगल जाते ?
- क्या भोजन में अन्न आधे से कम रहता है ?
- कहीं हमारा भोजन मांस, मछली ,पकवान ,मिठाई ,चटनी, अचार ,मिर्च मसाले जैसी हानिकारक पदार्थों से तो नहीं भरा रहता ?
- चाय ,तंबाकू ,पान की भरमार से पेट खराब तो नहीं हो रहा है ?
- क्या जल्दी सोते जल्दी उठते हैं ?
- क्या हमारी रोटी बेईमानी से तो कमाई हुई नहीं होती?
- क्या इतना श्रम करते हैं कि थक कर रात को सो जाते हैं ?
- क्या दिनचर्या में व्यायाम, मालिश, आसन, टहलना शामिल है ?
- क्या हमको जिंदगी से घृणा है ?
- क्या हम ब्रह्मचर्य की मर्यादा का पालन करते हैं ?
- क्या हम चिंता शोक क्रोध आवेश ईर्ष्या द्वेष उत्तेजना आशंका निराशा से ग्रसित तो नहीं है ?
- स्नेह और मुस्कुराने की आदत तो नहीं छोड़ दी है ?
- क्या हम उपवास करते हैं ?
- शारीरिक मानसिक श्रम की मात्रा शक्ति से बाहर तो नहीं है ?
- बात-बात में दवा दारू की भरमार तो नहीं करते ?
- क्या हमने उपासना के लिए दैनिक कार्यक्रम में कोई समय नियत रखा है ?
Conclusion
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