Last Updated on 02/03/2023 by Editorial Team
Hindi Story – चमक उठी तलवार: कर्नाटक के काकतीय राजवंश की कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। वह वीरता और शौर्य में अपनी सानी नहीं रखता था। वीरता की कहानियाँ हमें देशभक्ति की शिक्षा प्रदान करती है।
इसी काकतीय राजवंश में एक सुंदर बालिका ने जन्म लिया, तो चारों ओर खुशियों के चिराग जल उठे। बालिका थी भी बड़ी सुंदर और बुद्धिमान आँखों में निराला तेज। इस सुंदर और तेजस्वी बालिका का नाम रखा गया चेन्नम्मा।
रानी चेन्नम्मा इतनी सुंदर और बुद्धिमान थीं कि उनके माता-पिता और परिवार के सभी लोग उन्हें देखकर मुग्ध होते थे। पर चेन्नम्मा के व्यक्तित्व में बचपन से ही वीरता की छाप थी। वह निडर तो थी ही। साथ ही उसे अस्त्र-शस्त्रों का अभ्यास अच्छा लगता। लोग कहते, “अरे, यह बालिका तो लड़कों से बढ़कर है। देखना बड़ी होकर यह इस राजवंश को कीर्ति में चार चाँद लगाएगी।”
बड़े होने पर चेन्नम्मा ने एक ओर घुड़सवारी और युद्ध-कला सीखी तो दूसरी कन्नड़ और संस्कृत समेत कई भाषाएँ सीखीं और उनके साहित्य का अध्ययन किया। यह देखकर सबको अचंभा होता कि सुंदर और तेजस्वी चेन्नम्मा की शस्त्र और शास्त्र दोनों में एक जैसी रुचि है। वह अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण बातों से सबको चकित कर देती। और जब युद्ध- कला के प्रदर्शन का समय आता, तो उसका पराक्रम देख, लोग दाँतों दते उँगली दबा लेते।
कुछ समय बाद कित्तूर के राजा मल्लसर्ज से चेन्नम्मा का विवाह हुआ
उन दिनों कित्तूर बहुत समृद्ध राज्य था जिसमें हीरे-जवाहरात के बाजार लगते थे। स्वयं मल्लसर्ज बड़े बुद्धिमान और उदार राजा थे और प्रजा का बड़ा खयाल रखते थे। मल्लसर्ज अपनी वीर और बुद्धिमान रानी चेन्नम्मा को बहुत प्यार करते थे और उनकी सलाह से ही हर काम करते थे। यहाँ तक कि राज-काज में भी वे उनसे सलाह लिया करते थे।
लेकिन कुछ समय बाद ही कित्तूर के भाग्याकाश पर दुख के काले-काले बादल छा गए। हुआ यह कि एक बार पूना के राजा ने मल्लसर्ज को चालाकी से कैद कर लिया। सीधे-सरल मल्लसर्ज पूना के राजा की इस कपटचाल को समझ नहीं पाए। कुछ समय बाद कारावास में ही उनकी मृत्यु हुई।
चेन्नम्मा के लिए यह बहुत बड़ा आघात था। उनका हृदय हाहाकार कर उठा। पर दुख और शोक की इस घड़ी में भी उन्होंने धीरज नहीं खोया। अब उन्हें ही पूरी हिम्मत और धीरज से पति की जिम्मेदारियों को पूरा करना था।
चेन्नम्मा ने निर्णय करने में एक क्षण की भी देर नहीं की। उन्होंने बड़ी रानी रुद्रम्मा के बेटे शिवलिंग रुद्रसर्ज को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया और स्वयं बड़ी कुशलता से राज्य की देखभाल करने लगीं। कित्तूर राज्य फिर पहले की तरह ही तरक्की करने लगा।
पर अंग्रेज भला यह कैसे बर्दाश्त करते ? उनकी गिद्ध निगाहें कित्तूर पर लगी थीं, जिसे वे हर हाल में हड़पना चाहते थे।
कुछ समय बाद शिवलिंग रुद्रसर्ज की मृत्यु हुई तो अंग्रेजों को मौका मिला। उन्होंने कित्तूर को अंग्रेजी राज्य में मिलाने का फरमान जारी कर दिया। राजा शिवलिंग ने मृत्यु से पहले अपने गोद लिए पुत्र गुरुलिंग मल्लसर्ज को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पर छल-बल के सहारे अपने राज्य का विस्तार करने वाली अंग्रेजी सत्ता और उसके प्रतिनिधि थेकरे ने यह मानने से इनकार कर दिया। उसने धमकी देते हुए कहा, “अब कित्तूर पर रानी चेन्नम्मा को कोई अधिकार नहीं है। हमारी नई नीति के अनुसार, कित्तूर पर हमारा अधिकार हो जाएगा। अगर रानी चेन्नम्मा नहीं मानेगी, तो
उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।” कित्तूर राज्य के दो शक्तिशाली सरदार भी अंग्रेजों से जाकर मिल गए थे। इससे अंग्रेजों की हिम्मत और बढ़ गई।
पर रानी चेन्नम्मा की वीरता का अभी उन्हें अंदाजा नहीं था। उन्होंने सोचा कि एक स्त्री भला इतनी बड़ी अंग्रेजी सत्ता का मुकाबला करने का साहस कैसे कर सकती है ?
जल्दी ही थेकरे स्वयं सेना लेकर कित्तूर पहुँचा और उसने चेतावनी दी,
“रानी चेन्नम्मा आत्मसमर्पण कर दे, वरना किले को नष्ट कर दिया जाएगा।” पर थेकरे ने जो सोचा था, उससे उलटा हुआ। उसी समय किले का फाटक खुला और रानी चेन्नम्मा मर्दाना वेश में तलवार लेकर अपने रणबांकुरों के साथ निकलीं और अंग्रेजी सेना पर प्रलय बनकर टूट पड़ीं।
अंग्रेज सेना भौचक्की थी। उन्होंने तो सपने में भी यह नहीं सोचा था। रानी चेन्नम्मा मानो दुर्गा बनकर आ गई थी और अपनी लपलपाती तलवार से बड़ी तेजी से दुश्मनों को मौत के घाट उतार रही थी।
किसी को अंदाजा नहीं था कि रानी चेन्नम्मा युद्ध-कला और सैन्य- संचालन में इतनी दक्ष हैं। थोड़ी देर में ही अंग्रेज सेना में भगदड़ मच गई। थेकरे मारा गया और देशद्रोही यल्लप्प शेट्टी और वेकंटराव भी मौत की नींद में सुला दिए गए।
बहुत से सैनिक और अंग्रेज अधिकारी बंदी बना लिए गए। चारों ओर रानी
चेन्नम्मा की वीरता का जयघोष सुनाई देने लगा।
पर अंग्रेज चुप कहाँ बैठने वाले थे। थेकरे का युद्ध में मारा जाना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी और वे जल्दी ही इसका बदला लेना चाहते थे। कुछ समय बाद अंग्रेजों ने आगबबूला होकर दोबारा कित्तूर पर हमला किया।
इस बार डीकन ने कमान सँभाली। अंग्रेजी सेना बहुत विशाल थी और
‘चेन्नम्मा के साथ सिर्फ मुट्ठी भर रणबांकुरे सैनिक थे, जो देश की मिट्टी के लिए अपने लहू की आखिरी बूंद तक बहाने के लिए तैयार थे। पर रानी चेन्नम्मा के मुट्ठी भर सैनिकों ने इस विशाल अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए ।
अंग्रेजों को एक बार फिर मुँह की खानी पड़ी थी। चारों ओर चेन्नम्मा की वीरता का जय-जयकार हो रहा था। अंग्रेजों को यह सहन नहीं हुआ।
इस युद्ध के कुछ ही समय बाद रानी चेन्नम्मा अभी सँभल भी नहीं पाई थीं कि अंग्रेजों ने फिर अपने शक्ति इकट्ठी करके विशाल सेना और भारी तोपखाने के साथ कित्तूर पर हमला बोल दिया। इस बार भी भीषण युद्ध हुआ, जिसमें कुछ सरदारों की गद्दारी के कारण रानी चेन्नम्मा बंदी बना ली गई। बंदीगृह की भीषण यातनाएँ झेलते हुए 21 फरवरी, 1829 को उन्होंने आखिरी साँस ली।
रानी चेन्नम्मा वीरता की अद्भुत मिसाल थीं, जिन्होंने साबित कर दिया कि देश की स्वतंत्रता और मान को ऊँचा रखने के लिए भारत की नारियाँ भी रणचंडी बनकर दुश्मनों से जूझ सकती हैं और उनके हृदय दहला सकती हैं। उन्होंने वीर सिंहनी की तरह अंग्रेजी सेना को जिस तरह छकाया, उससे पूरे देश में देशभक्ति और स्वाभिमान की लहर पैदा हुई। इसीलिए इस वीर रानी के बलिदान की अमर कथा आज भारत-भूमि के चप्पे-चप्पे में सुनाई देती है।
वीरता की अद्भुत मिसाल पेश करने वाली रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों से इतनी जवरदस्त मुठभेड़ की थी और उनके इस तरह छक्के छुड़ाए कि स्वयं अंग्रेज सेनानायक इस महान वीरांगना की तलवार का जौहर देखकर दाँतों तले उँगली दबा लेते थे। यहाँ तक कि अंग्रेज इतिहासकारों ने भी इस महान वीरांगना को बड़े आदर और सम्मान से याद किया है।