मनुष्य का शरीर पाँच तत्व सूर्य, पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल से मिलकर बना है। मानव के लिए ये सभी साक्षात परमात्मा के स्वरुप है,
प्रथम मंत्र- ॐ मित्राय नमः
यहाँ मित्राय का मतलब मित्रता से है । यहाँ सूर्य देव को हम सभी का सच्चा मित्र बताया गया है और वह हमारे सहायक भी हैं ।
द्वितीय मंत्र- ॐ रवये नमः
“रवये“ शब्द का अर्थ है जो स्वयं प्रकाशवान है तथा सम्पूर्ण जीवों को अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान करता है जिससे सभी जीवों का कल्याण हो सके ।
तृतीय मंत्र- ॐ सूर्याय नमः
हाँ सूर्य को ईश्वर के रूप में अंकित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में सात घोड़ों के जुते रथ पर सवार होकर सूर्य के आकाश गमन की कल्पना की गई है
चतुर्थ मंत्र- ॐ भानवे नमः
सूर्य को भौतिक स्तर पर गुरु का प्रतीक माना गया है, हनुमान जी के गुरु भी सूर्यदेव ही हैं। इसका सूक्ष्म तात्पर्य है कि गुरू हमारी भ्रांतियों के अंधकार को दूर करता है
पांचवा मंत्र- ॐ खगाय नमः
समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्राचीन काल से ही सूर्य की गति के हिसाब से समय बताने वाले सूर्य यंत्रों के प्रयोग को आधार माना जाता है
छठा मंत्र- ॐ पूष्णे नमः
सूर्य सभी शक्तियों तथा जीवन का स्त्रोत है। एक पिता की भाँति वह हमें शक्ति, प्रकाश तथा जीवन देकर हमारा पोषण करता है।
सातवां मंत्र- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
हिरण्यगर्भ, स्वर्ण के अंडे के समान एक ऐसी रचना है जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई मानी गयी है | सूर्य को भी हिरण्यगर्भ के समान माना गया है ।
आठवां मंत्र- ॐ मरीचये नमः
मरीच ब्रह्मपुत्रों में से एक है परन्तु यहाँ इसका अर्थ मृग मरीचिका से लिया गया है। जैसे की हम जीवन भर सत्य की खोज में इधर उधर भटकते रहते हैं
नौवां मंत्र- ॐ आदित्याय नमः
विश्व जननी ( महाशक्ति ) के अनंत नामों में एक नाम है अदिति माता। उन्ही को समस्त देवी देवताओं की जननी माना गया है